उत्तराखंड, चमोली ज़िला:
जहां सरकार की मशीनें नहीं पहुंच पाईं, वहां एक रिटायर्ड मास्टर साहब ने 14 साल तक अपने हाथों से पहाड़ काटकर बच्चों के लिए रास्ता बना दिया।
यह कहानी है गोविंद सिंह रावत की, जो चमोली ज़िले के एक छोटे से गांव सिलपाटा में रहते हैं। उम्र है 60 के पार, लेकिन जज़्बा किसी नौजवान से कम नहीं।
रावत जी ने देखा कि उनके गांव के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे क्योंकि रास्ता बेहद खतरनाक था। बच्चों को खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती थी, पगडंडियां फिसलन भरी थीं और बरसात में हालत और खराब हो जाती थी।
सरकारी मदद मांगी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
तब उन्होंने तय किया — “अगर सरकार नहीं सुनेगी, तो मैं खुद रास्ता बनाऊंगा!”
उन्होंने बिना किसी मशीनरी, सिर्फ हाथों में फावड़ा, कुदाल और अपनी लगन के साथ शुरू किया 3 किलोमीटर लंबा रास्ता बनाने का काम।
सुबह-सुबह उठते, पहाड़ पर जाते, घंटों खुदाई करते और धीरे-धीरे एक ऐसा रास्ता बना दिया जिस पर अब बच्चे आसानी से स्कूल जा सकते हैं — यहां तक कि साइकल से भी।
रावत जी कहते हैं:
“सरकार से उम्मीद करना गलत नहीं है, लेकिन हर चीज सरकार पर नहीं छोड़ी जा सकती। जब बच्चों का भविष्य सामने हो, तो कोई भी इंसान चुप नहीं बैठ सकता। ये रास्ता सिर्फ मिट्टी का नहीं, उम्मीद का रास्ता है।”
अब इस रास्ते का फायदा सिर्फ उनके गांव को नहीं, बल्कि आसपास के 5 गांवों के बच्चों को मिल रहा है।
जहां पहले 2 घंटे लगते थे स्कूल पहुंचने में, अब बच्चे 30 मिनट में पहुंच जाते हैं।
उनकी इस मेहनत और निस्वार्थ सेवा को अब लोग ‘पहाड़ी माउंटेन मैन’ कहकर सम्मान दे रहे हैं। लेकिन रावत जी के लिए सबसे बड़ा इनाम है — बच्चों की मुस्कुराहट।
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